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छत्तीसगढ़ का राज्योत्सव चार से, पहले दिन शान, दूसरे दिन नीति मोहन की होगी प्रस्तुति, पवनदीप-अरुनिता की जोड़ी भी दिखाएगी कमाल

02-Nov-2024
रायपुर।  ( शोर संदेश )  छत्तीसगढ़ में 4 नवंबर से राज्योत्सव की शुरुआत हो रही है। 3 दिन के आयोजन में होने वाले परफॉर्मेंस का शेड्यूल जारी किया गया है। इसमें लोक कलाकारों के साथ ही बॉलीवुड के सिंगर भी परफॉर्म करते दिखेंगे।
राज्योत्सव के उद्घाटन समारोह में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव शामिल होने वाले हैं। वहीं समापन और अलंकरण समारोह के दिन देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ रायपुर पहुंचेंगे।
प्रदर्शनी और झांकी भी लगाई जाएगी
हाल ही में प्रदेश के उपमुख्यमंत्री अरुण साहब ने दिल्ली जाकर जगदीप धनखड़ को न्योता दिया था। उपराष्ट्रपति कार्यालय से छत्तीसगढ़ आने की सहमति भी मिल चुकी है। नया रायपुर में होने जा रहे राज्योत्सव को लेकर विभाग अपनी तैयारी कर रहे हैं।
सभी विभागों की अलग-अलग यहां पर प्रदर्शनी और झांकी भी लगाई जाएगी। फूड कोर्ट भी तैयार किया जा रहा है। कई तरह के सेल्फी जोन बन रहे हैं। हस्तशिल्प से जुड़े हुए आर्टवर्क, कपड़े, मिट्टी की बनी चीजें लोग यहां से खरीद पाएंगे।

रायपुर शहर से लोग नया रायपुर के राज्योत्सव मेला ग्राउंड जा सकें इसके लिए बीआरटीएस बसें भी चलाई जा रही हैं। आमतौर पर ग्राउंड तक यह बसें नहीं जातीं, लेकिन राज्योत्सव के दौरान तीन दिनों तक यहां पहुंचने और वापस आने के लिए इन बसों की सुविधा मिलेगी।

यह बसें सीबीडी बिल्डिंग से राज्योत्सव मेला ग्राउंड पहुंचेंगी। इसी तरह ग्राउंड से सीबीडी बिल्डिंग होते हुए वापस रायपुर आएंगी। 20 से 25 रुपए के शुल्क में आम लोग ये यात्रा कर सकेंगे। वापसी के लिए राज्योत्सव मेला ग्राउण्ड से सीबीडी- तेलीबांधा-डीकेएस भवन-रेलवे स्टेशन के लिए बसों का संचालन होगा।
यह बसें रायपुर से सुबह 11 बजे से रात के 9 बजे तक हर आधे घंटे के अंतराल में मिलेंगी। राज्योत्सव मेला ग्राउंड से रायपुर वापसी के लिए दोपहर 12.12 बजे से रात्रि के 11.12 बजे तक हर आधे घंटे में बस चलेगी।

सुनो भाई उधो,हसदेव के सराप

30-Aug-2024
 परमानंद वर्मा
 ( शोर संदेश )  तमाशा खुद न बन जाना देखने वालों के तर्ज पर.एक दिन क्या हुआ हसदेव से मुलाकात करने पहुंचा था तब शुरु में बात सौजन्यपूर्ण रहा लेकिन अचानक गुस्से में भरकर कहा, सब लोग  मेरी बर्बादी का तमाशा देख रहें है। नदी, नाले, पर्वत, पेड पौधे, हाथी, शेर, भालू, चीता, सियार, बंदर, पक्षी, चीटियां सहित सभी जीव जन्तु, दर.दर भटक रहें हैं। दुख मुझे मेरी अपनी जंगल की नहीं है लेकिन इन मूकधारियों की है। भूखे प्यासे भटक रहें हैं इस गांव से उस गांव। इनकी ऐसी हालत करनेवाले शैतानों सावधान... तमाशा खुद न बन जाना तमाशा देखने वालों।

कुलेश्वर महादेव, राजिम दरशन करके घर आय बर लहुटत रेहेंव तब कोनो माइलोगिन के बोमफार के रोये के आवाज मोर कान मं टकरइस। एती-ओती चारों मुड़ा नजर फइलाएव, फेर एको झन माइलोगिन नइ दीखिस। सोचेंव, मन कइसे भरमाय असन लागत हे? आवाज तो रोये के आवत हे फेर देखउन कइसे नइ देवत हे? कोनो भूत, परेतिन, चंडाल अउ चंडालिन तो नइ होही?
महानदी के छोर मं आगेंव, अउ बने हीरक के निहारेंव, अवइया-जवइया मन ऊपर घला नजर दउड़ायेंव फेर ओमन तो बने हांसत, कुलकत मंदिर आवत-जात रिहिन हे। धीरे-धीरे ओ कोती गेंव जेन कोती ले रोये के अवाज आवत रिहिसे। 
देखथौं, एक झन खोलदावन असन जघा मं नदी हा अपन छोटे बेटा नरवा ला गोदी मं बइठार के अइसे कलपत अउ रोवत रिहिसे जइसे कोनो ओकर गोसइयां मरगे हे। 
तीर मं जाथौं अउ पूछथौं- का होगे मोर महतारी, तैं याहा सावन पूरनमासी के दिन, जब लोगन उछाह मनावत हे, कुलेश्वर महादेव के पूजा पाठ करत हे, दूध, दही, घी लगा-लगा के अभिषेक करत हे, फूल-पान, नरियर चढ़ावत हे अउ तैंहर अतेक सुग्घर पावन पबरित दिन मं आंसू बहावत बइठे हस, बेटा ला धरके?
मोर पूछई-गुछई मं रोवई-गवई बंद होइस। ओहर कहिथे- जेकर ऊपर पहाड़ गिरथे, बिपत आथे ओला उही जानही बेटा। 
नदी के दुख ला देख ओला आघू पूछे के हिम्मत नइ होइस। जरे मं नून डारना अच्छा नइ होवय। तभो ले दुख के, रोये के कारन का हे एला जानबा तो होय। इसी समझ के पूछे के थोकन हौसला बनाएंव।
मोर महतारी, अतका तो जान सकत हौं के तोर रोये के का कारन हे अउ इहां अइसन ओंटा-कोंटा मं?
नदी कहिथे- जान के का करबे बेटा, अउ तैं करे का सकत हस। दुखिया मन के कोनो नइ होवय बाबू। ओहर दुख मं जनम लेथे, दुख मं पलथे अउ दुखे झेलत आखिर मं दम तोड़ देथे। 
नदी के बात ल सुन के मोर दिमाग काम करना बंद कर दीस, अइसे लगिस जइसे बिजली के करंट लग गे। सोचेंव- का करौं, का नइ करौं। देखथौं- ओकर गोदी मं नरवा खेलत राहय, कभू ओकर मुंह, कान, गाल मा मया पीरित देखावय तब कभू दूध पीये खातिर स्तन ला धर के मुंह ला ढेंठी मं लगा के चुहके के कोशिश करत राहय। 
अपन आंखी के आंसू ला पोंछत अउ लुगरा के अचरा ला मुंड़ मं ढांकत बताथे- बेटा, तैं मोर दुख पूछत हस ना, रोवइ-गवई के कारन जानना चाहत हस न, तब सुन- मैं उही महानदी हौं जेकर चारों मुंड़ा ए पार ले ओ पार कभु रेती के पहाड़ खड़ा हो जाय राहय, कुलेश्वर महाराज साक्षी हे अउ आज देख, का हालत हे। मोर छाती ला रापा, कुदारी, बुलडोजर मं कोड़-कोड़ के निकालत हे। मैं कहां ले ओगरौं, कहां ले लानौ। मोर शरीर ला देख, मोर हाथ-गोड़ ला देख, छाती ल देख, सब पिचकगे हे। राक्षस मन बरोबर ट्रेक्टर ट्राली मं भर-भर के, मोर छाती मं चढ़-चढ़कर  बस बेहाल कर दे हे बेटा। कुलेश्वर भगवान का करहि?  ये मोर सब दुख ल जानत हे, देखत हे, फेर कोनो काम के नइहे। करत राहौ तुमन पूजा-पाठ अउ अभिषेक, फेर मोर बर ये तो सिरिफ पथरा के भगवान हे, ओकर छोड़े कुछु नहीं। 
बिहान दिन सिहावा पर्वत पहुंचेंव, ओकरो हालत जतर-कतर हे। चेहरा लटके-उतरे। रोथे तब रोवासी नइ आवय। गोठियाय के कोशिश करथे तब बक्का नइ फूटय तइसे कस गतर होगे राहय। थोथना ल उतरे कस देखेंव तब मोरो कुछु पूछे-पाछे के हिम्मत नइ होवत रिहिसे। फेर का करबे कोनो ला दुखी, उदास देखथौं तब रेहे नइ सकौं। 
पूछथौं- कइसे का बात हे सिहावा, कइसे फटीचर छाप हालत हे तोर, कोन करे हे अइसन हालत?
हाथ ल धर के अपन कोती खींचथे अउ कान करा अपन मुंह ल दता के कहिथे- धीरे बोल, इहां बड़े-बड़े राक्षस के बसेरा हे, ओकर गण मन चारों मुड़ा गिंजरत रहिथे, निगरानी करथे। कोन आवत हे, कोन जावत हे?
सोचेंव- जउन परबत मं ऋंगी रिसि जइसन महान साधक तपस्या करे हे, साधना करे हे ओ सिहावा परबत अतेक डर, भय, आतंक मं जीयत हे, अपन समे गुजारत हे?
पूछेंव- कइसे सिहावा, अतेक आतंक तोला काके हे? 
ओहर फेर धीरे बोले के इशारा करत कहिथे- देख चारों मुड़ा- छाती, हाथ, गोड़, मुड़ी मन के का हालत कर देहे। ओमन ला गिट्टी अउ चट्टान चाही तेकर सेती ओ राक्षस मन बड़े मशीन धर-धर के आथे अउ ये परबत ला तहस-नहस कर डरे हे। मोर जीना हराम कर दे हे। अब सिहावा नहीं, सिरावत जाथौं, मोर दम घुटत जात हे। 
भारी करलई हे, जेती जाबे तेती चारों मुड़ा दुखे-दुख हे, सुख के कोनो सुराग नइ मिलत हे। नगरी-सिहावा ले घूमके अपन गांव आगेंव। 
एक दिन बिलासपुर के मितान हा फोन करथे। का भई मितान, अरे आना घू्मे-फिरे ल, निच्चट घरखुसरा चिरई असन खोंधरा मं घुसे रहिथस। ओला केहेंव- ले हौ, आवत हौं। 
मितान ह हसदेव जाय के योजना बनाय रहिथे। ओ हा अपन काम-बुता मं लगे राहय। अउ कुछ समय के बाद मंहु पहुंचेंव हसदेव के जंगल मं। जान दे, इहां तो अइसे कोलाहल मचे हे तेन ला जइसे अभी इजरायल अउ लेबनान के झगरा मं हजारों, लाखों मनखे बेमौत मारे गे हे। चारों मुड़ा चीख पुकार बचा लौ- बचा लौ...। बम बारुद बरसावत हे, टैंक बरसाय कस हाल हसदेव जंगल के होवत हे। 
महानदी कस हाल हसदेव के घला होगे हे। अतेक आतंक, मारकाट। राक्षस बन गे हे मनखे मन। हजारों लाखों पेड़ रोज काटत हे। जंगली जानवर जंगल छोड़के गांव-गांव भागत फिरत हे। बिन दाई-ददा के लइका मन बरोबर। हाथी, भालू, शेर, चीता, हिरण, बेंद्रा, चिरई-चिरगुन, सांप डेडु, कीड़ा-मकोड़ा, चांटी जइसे कतको परकार के जीव-जन्तु अपन-अपन रेहे के ठिहा खोजत हे, फेर जंगल मं रेहे के ठिकाना नइ मिलत हे। 
ये जंगल के विनाश ल देखके मोरो आंखीं मं आंसू आगे। हसदेव पूछथे- भइया, तोर आंखी मं आंसू?
ओला मंय बताथौं- तोर दुख समझगेंव फेर मंय ये नइ समझ पायेंव कि अभी तक कइसे जीयत हस, तोर परान तक कइसे छूटे नइहे?
मोर अतका बात ल सुनके बिन दाई ददा कस लइका जइसे कहूं मेला-ठेला मं भुला जथे तब बोमफार के रोथे वइसने हसदेव रो डरिस। ओहर कहिथे- मोर बरबादी के मोला कोनो दुख, गम नइहे भैया, दुख हे मोर ये लइका हाथी, भालू, शेर, सियार, हिरन, बिंद्रा, सांप-डेडु, चांटी अउ असने कतको जीव-जन्तु मन के। ये मन कहां रइहीं, कहां जांही, कहां बसही, कोन दिही एमन ला खाय-पीये बर? सब तना-नना होगे के भटकत हे। 
अचानक देखथौं- हसदेव के चेहरा गुस्सा मं भरगे राहय, कहिथे- अपन दुख ला ता मंय कइसनो करके झेल लेहूं भइया, फेर कोनो महतारी बाप अपन आंखी के आघू मं लइका मन ला लांघन-भूखन मरत नइ देख सकय। ओ अंधरा के औलाद मन जइसन मोर बिनास करिन, मंय सराप देवत हौं, जइसे कौरव कुल के विनास होइस ना, तइसने एकरो मन के होके रइही।

 


स्त्री 2 ने तोड़ा गदर 2 का रिकॉर्ड तो सनी देओल का आया रिएक्शन, फिल्म के लिए कह डाली ये बाद

23-Aug-2024
नई दिल्ली:    ( शोर संदेश )  स्त्री 2 का बॉक्स ऑफिस पर हर दिन शानदार जलवा देखने को मिल रहा है. राजकुमार राव, अपारशक्ति खुराना, श्रद्धा कपूर, पंकज त्रिपाठी और अभिषेक बनर्जी की एक्टिंग को देखने के लिए दर्शकों की भीड़ हर दिन सिनेमाघरों में पहुंच रही है. यही वजह है कि स्त्री 2 ने सिर्फ एक हफ्ते में ही कई फिल्मों की कमाई के रिकॉर्ड तोड़ डाले हैं. राजकुमार राव और श्रद्धा कपूर की फिल्म अपने पहले हफ्ते में ही फाइटर से आगे निकल गई है. इतना ही नहीं स्त्री 2 ने सनी देओल की गदर 2 को भी धूल चटा डाली है.
दरअसल पिछले साल आई गदर 2 ने दुनियाभर में अपने पहले हफ्ते 284.63 करोड़ रुपये की कमाई की थी. लेकिन स्त्री 2 ने अपने पहले हफ्ते में 400 करोड़ रुपये से ज्यादा की कमाई कर डाली है. वहीं स्त्री 2 की इस सफलता को देखते हुए सनी देओल ने रिएक्शन दिया है. उन्होंने अपने आधिकारिक इंस्टाग्राम अकाउंट की स्टोरी पर स्त्री 2 की टीम को बधाई दी है. साथ ही बॉक्स ऑफिस पर चल रहे सूखे के खत्म होने पर खुशी जाहिर की है. उन्होंने स्त्री 2 की टीम के लिए लिखा, 'बॉक्स ऑफिस जमकर बारिश करने के लिए स्त्री 2 की टीम को ढेर सारी बधाई.'
सोशल मीडिया पर सनी देओल का यह पोस्ट तेजी से वायरल हो रहा है. आपको बता दें कि स्त्री 2 की बात करें तो श्रद्धा कपूर, राजकुमार राव स्टारर स्त्री 2 साल 2018 में आई फिल्म स्त्री का दूसरा भाग है, जिसमें पंकज त्रिपाठी, अपारशक्ति खुराना अहम किरदार में नज़र आ रहे हैं. यह हॉरर कॉमेडी फिल्म अपने ट्रेलर से फैंस के बीच काफी चर्चा में रही थी.
 

पेड़ के छांव

01-Aug-2024
( शोर संदेश )  पूछ वोला कीमत भूख के जेन ला,
कहीं कुछू खाय बर घलो नइ मिले।।
पूछ ओला कीमत पसीना के जेन ला,
थोरिक रुके बर छांय घलो नइ मिले।।

अपन स्वारथ बर जम्मो रुखराई ला,
भाजी _भाटा कस हमन काट डरेन।
जब पड़ीस मार ऊपर वाले मालिक के,
त कोरोना मा तड़प _तड़प छाँट मरेन।।

अब भीतर बाहिर के आँखी ला खोल,
कोंदा हस त थोरिक इसारा मा बोल।
कोनो भारी नींद मा हस झकना के उठ,
लोगन ला जगा हल्ला कर बजा ढोल।।

मनखे,गरुवा,छेरी,हिरण, कुकुर,बिलई,
शेर,भालू,चीता,तेंदुआ होय छोटे चिरई।
सब ला घाम ले बचे बर आज जरूरत हे।
ठंडा_ठंडा पानी अउ छोटे _मोटे रुख राई।।

एखर सेती मोर _बात ला चेत लगा के सुनौ।
आगू _पाछू के लोग लइका बर कुछु गुनौ।।
अपन घर के कोनो भी काम सुख हो चाहे दुख।
बर,पीपर,नीम संग फलदार पेड़ बर जगा चुनौ।।

पहिली के सियान मन तरिया,नदियां कोड़ावय।।
ओखर चारो कोती छोटे बड़े रुख राई लगावय।
आज के लइका मन रहिथे डिजिटल दुनियां मा।
मोबाइल,फेस बुक मा पेड़ लगा हल्ला मचावय।


                      तुलेश्वर कुमार सेन
                      सलोनी राजनांदगांव

सुनो भाई उधो,अंधेर नगरी अउ चउपट राजा

01-Aug-2024
( शोर संदेश ) परमानंद वर्मा क्या अंधे की औलाद अंधे ही होते हैं, यदि हां तब तो कुछ नहीं कहना और जब नहीं होते हैं तब इस कहावत को अनावश्यक रूप से क्यों गढ़ा गया है? कुछ तो इसका अर्थ निश्चित होगा ही। कहते हैं कलियुग में इसकी प्रचुरता है। यहां सब अंधे हो गए हैं, गलत तो गलत है ही, लेकिन सत्य को भी गलत करार साबित करने में यहां के लोगों ने महारत हासिल कर ली है। जिधर देखो उधर अनैतिक, अधार्मिक, असामाजिक और गैर कानूनी कार्य हो रहे हैं लेकिन इसे मानने को कोई तैयार नहीं। आतंक, अधर्म, अन्याय और पाखंड जिंदाबाद है, और इससे डरकर सत्य छिप गया है निर्जन स्थल जंगल में कहीं जाकर। इसी संदर्भ में प्रस्तुत है यह छत्तीसगढ़ी आलेख...
 

 


कोन ह कोन ला चलावात हे

20-Jul-2024
ददा _दाई कहिथे घर ला में चलावत हो।
बेटा _बहू कहिथे घर ला में चलावत हो।।
आप सबो मनखे मन जानत हो संगी हो।
आज हमर घर ला सरकार हा चलवात हे।।

जनम ले मरन तक योजना उही बनावत हे।
पूरा करे बर गाँव मन मा तिहार मनावत हे।।
कोनो कहीं छुटगे त ओखर बर तंत्र लगा के।
शमशान घाट मा घलो खोजे बर जावत हे।

क्रिकेट,सिनेमा,सरकार सब ला भरमावत हे।
काम कम विज्ञापन ला जादा बतावत हे।।
आज कोनो ला समझ नइ आवत हे भाई।
जनता या सरकार कोन देश चलावत हे।।

राजनीति सबके धंधा बनत जावत हे।
दल बदलू मन सत्ता के सुख पावत हे।।
स्कूल कालेज नशा पानी के अड्डा बनगे।
धरती महतारी रो _रो के गोहरावत हे।।

                         तुलेश्वर कुमार सेन
                          सलोनी राजनांदगांव

 


कोन ह कोन ला चलावात हे

19-Jul-2024
ददा _दाई कहिथे घर ला में चलावत हो।
बेटा _बहू कहिथे घर ला में चलावत हो।।
आप सबो मनखे मन जानत हो संगी हो।
आज हमर घर ला सरकार हा चलवात हे।।

जनम ले मरन तक योजना उही बनावत हे।
पूरा करे बर गाँव मन मा तिहार मनावत हे।।
कोनो कहीं छुटगे त ओखर बर तंत्र लगा के।
शमशान घाट मा घलो खोजे बर जावत हे।

क्रिकेट,सिनेमा,सरकार सब ला भरमावत हे।
काम कम विज्ञापन ला जादा बतावत हे।।
आज कोनो ला समझ नइ आवत हे भाई।
जनता या सरकार कोन देश चलावत हे।।

राजनीति सबके धंधा बनत जावत हे।
दल बदलू मन सत्ता के सुख पावत हे।।
स्कूल कालेज नशा पानी के अड्डा बनगे।
धरती महतारी रो _रो के गोहरावत हे।।

                         तुलेश्वर कुमार सेन
                          सलोनी राजनांदगांव

सुनो भाई उधो, अरे तोला का भइगे..?

16-Jul-2024
  ( शोर संदेश )  परमानंद वर्मा स़ोचिये, सब  कहीं कानून व्यवस्था, मर्यादा व परम्पराओं को तोडना शुरू कर दें, न माने तब संसार व सृष्टि का क्या होगा। बरसात ठेंगा दिखा रहा है, धरती सूखी पडी है, कंठ प्यासे हैं। सबकी निगाहें आसमान की ओर है। इसी संदर्भ में पेश हे यह छत्तीसगढी आलेख....।

देखत हौं, एकर चाल ला? अभी हकन  देहूं, ठठा देहूं तब जउन ए इतरावत हे ना तउन सब घुसड़ जाही। जान दौ... जान दौ काहत हौं तब एकर मतलब ए तो नइ होवय के मुड़ी चढ़के मूतय, छानही मं होरा भुंजय?
गुड़ी चंवरा मं बइठ के भकाड़ू पइरा डोरी बरत रहिथे तब नंदू ढेरा चलावत पटवा डोरी बनावत रहिथे ततके बेर महावीर भइया बजार कोती ले आवत रिहिसे तउन हा दूनो झन ल साहेब बंदगी, सत कबीर काहत जय जोहार करथे। 
भकाड़ू पूछथे- कते डहर ले आवत हस साहेब, गजब दिन मं दीखत हस? तब ओहर बताथे- काला बताबे भइया, अरे अमलेसर मं गुरु साहेब के सत्संग चलत रिहिसे उहिचे गे रेहेंव। परन दिन आय हौं, चलव धान बोनी, खेती किसानी के दिन आगे हे, अब भिड़े जाय। 
अब देख न साहेब, ये बादर हा तो आंखी-कान ल निच्चट मूंद दे हे गा, एको बूंद तो भला टपकतिस? भकाड़ू के बात ल सुनके महावीर कहिथे- टपकही कहां ले, रुख-राई, नदिया-नरवां, जंगल, पहाड़ के तो सतियानास करत हौ। प्रकृति दाई के आंसू ल जाके तो भला देखव, रो-रो के बारा हाल होगे हे। ओकर लोग लइका, शेर-भालू, चीता, हिरण, हाथी, कोलिहा, हुड़रा, बेंदरा अउ चिरई-चिरगुन के बसेरा उजारत हौ, उजार दे हौ। ओमन कहां रइही, कहां जांही, का खाही, का पिही, हे कहूं कोनो मेर ओकर मन के ठिकाना। 
साहेब तोर बात हे तो सोला आना सही, फेर सरकार ला विकास करे खातिर काम तो कुछ करे ले परही ना। भकाड़ू बताथे- जंगल मं ही तो सबो खनिज संसाधन भरे परे हे, खदान के तो दोहन करे ले परही ना?
ककरो घर ल उजार के, बरबाद करके देस-परदेस के विकास करई कोनो विकास नोहे भकाड़ू। तोर संग कहूं अइसने भला हो जही तब तोला कइसे लगही? 
भयरा ठेठवार घला अतके बेर आ जथे अउ ओकर मन के बीच मं जउन गोठ-बात चलत रिहिस तउन ल कान टेढ़ के सुने ले धर लिस।  मुड़ी मं बड़ेक जनिक पागा बांधे राहय तउन ल खोल देथे अउ पूछथे- का गोठियावत हौ जी तुमन। 
नंदू के ढेरा घला घूमना बंद होगे रिहिसे। भैरा ठेठवार उही ल पूछथे- कस रे नंदू, का-का गोठियावत हौ?
भैरा के बात ल सुनके भकाड़ू थोकन तमके असन कहिथे- ये निपोर भैरा गतर के हा, कांही ल सुन पाही न समझ पाही अउ काहत हे का-का गोठियावत हौ?
नंदू हा ओला महावीर साहेब जउन रुख-राई, नदिया-नरवा, तरिया, कुआं, जंगल, पहाड़ के विनाश के बात सुनाथे तब ओहर कहिथे- बने बात तो काहत हे महावीर साहेब हा। अरे जब पेड़-पौधा नइ रइही, जंगल-पहाड़, नदिया नइ रइही, कुंआ बवली नइ रइही तब जंगली जानवर, पशु-पक्षी ल छोड़ मनखे के बारा हाल हो जही। भाड़ मं जाय तुंहर सरकार के विकास के काम, जनता के जीवन ल पहिली देखव।
महावीर साहेब कहिथे- देख, एको अक्षर नइ पढ़े-गुने हे, गाय-भइस चराथे तेन अतेक सब बात ल समझथे अउ तुंहर सब झन के आंखी मुंदागे हे, पथरा परगे हे, गोबर भरगे हे दिमाग मं। कहां ठेंगवा ल बरसही पानी हा?
ओहर कहिथे- चाहे कतको पूजा-पाठ, हवन, जग, गीता-भागवत, सत्संग करा लौ, दाई, बेटी, बहिनी अउ गोसइन के आंखी डहर ले कहूं आंसू झरत रइही तब ओकर परिवार, समाज अउ देश मं सुख-शांति कभू नइ आ सकय। ये प्रकृति कोन हे, इही दाई, बहिनी, बेटी मन तो आय। रुख-राई, जंगल, पहाड़, नदी-नरवा खुलेआम नीलाम होवत हे, ओकर मन के छाती मं बुलडोजर चलत हे। ओकर मन के दुख ल उही मन जानही?
भैरा ठेठवार पूछथे- का काहत हे साहेब हा गा? तब भकाड़ू कंझावत कहिथे- अरे काला का सुनाबे गा, कहिबे आन तब सुनही आन। तभो ले नंदू हा सबो बात ल ओला सुनाथे, समझाथे। 
ठेठवार कहिथे- बने काहत हे साहब हा, धरती मं पाप बढ़गे हे, पेड़ के जउने डारा मं बइठे हौ अउ ओकरे ऊपर टंगिया चलाहौ तब मरिहौ ते बाचिहौ? जा उही पाके पानी नइ गिरत हे तुंहर परदेस मं। आन कोती देख कइसन बरसत हे चारों मुड़ा पानी-पानी। बांधा फूटत हे, पुल-पुलिया टूटत हे, घर-दुआर बोहावत हे अउ छत्तीसगढ़ ल देख बादल हा मुंह अइठ ले हे। जइसन करनी तइसन भरनी। कतको चिल्लावौ, गोहार पारौ, अरे तोला का भइगे... फेर ओकर खेल ल उही जानही। 
जाती-बिराती
आगे असाड़ गिरगे पानी
धर ले नांगर धर ले तुतारी
चल रे बइला अररर, त-त-त
चल रे बइला अररर, त-त-त।

सुनो भाई उधो, नाटक जिनगी के...

12-Jul-2024
 परमानंद वर्मा ( शोर संदेश )  लोग किसी का सुख, आगे बढ़ते, खाते-पीते, विकास के नए सोपान गढ़ते नहीं देख सकते, क्योंकि तकलीफ होती है जबकि अपनी मेहनत और पुरुषार्थ से आगे बढ़ते हैं। सुख, आनंद और विकास पर किसी एक व्यक्ति का, वर्ग का एकाधिकार तो नहीं है। लेकिन हां, समाज में ऐसी विद्रुपता, बुराई देखने को मिलती है। बढ़ते हुए व्यक्ति, वर्ग व समाज का ऐसा टांग खींचते हैं, गिरा देते हैं कि एक गिलास पानी के लिए तड़पता रह जाता है। इसी संदर्भ में प्रस्तुत है यह छत्तीसगढ़ी तथा-कथा...
परछी मं अलदहीन काकी मइरसा मं दही ला बिलोवत रिहिसे। ओ डाहर एक कोती ढेकी मं सुकवारो अउ रामहीन एक बोरा धान ला कूटत राहय। फेकन काकी हा खोवत राहय तब दुकलहीन हा कुटे चाउंर ला छीनत-निमारत राहय। 
फेंकन काकी हा अलदहीन ला पूछथे- कस ओ दीदी, एक-डेढ़ घंटा ले ऊपर होगे, दही ला बिलोवत अभी ले लेवना नइ निकले हे का?
आधा मइरसा ले ऊपर हे फेकन दीदी दही हा, देख ना बिलोवत-बिलोवत थकासी असन लगे ले धर ले हे, तभो ले ये चंडाल लेवना हा निकले के नांव नइ लेवत हे। ओकर बात ल सुनके फेकन हा मजाक करत कहिथे- सिद्धो मं लइका नइ होय रे अलदहीन, बारा कुंआ मं बांस डारबे तब कहूं जाके सिद्ध परथे, हांसत-खेलत लइका ल पाबे?
कहां के बात ल कहां घुमा फिराके कोन कोती ले जाय के अक्कल तो तहीं सीखे हस बहिनी, हमन अइसन लटर-पटर ला नइ जानन। फेकन अउ अलदहीन मं अइसने हास-परिहास चलत रिहिसे ततके बेर सुकवारो आथे अउ बताथे- तोर बहू सतवंतीन हा कलहरत हे। 
दही बिलोवत रिहिसे तउन बुता ल गनेसिया ल देथे अउ कहिथे- मंय देखत हौं का बात हे। बहू के हरू-गरू होय के समे आगे रिहिसे। ओकर कुरिया मं जाके देखथे तब बहू दरद के मारे छटपटावत, कलहरत, चिल्लावत हे- मरगेंव दाई, मरगेंव ददा, मोर परान छटके लेवत हे, बचा ले दाई। 
अलदहीन जानगे, जचकी के बेरा हे। अपन बहू तीर जाथे तब ओकर  हाथ ल कस के पकड़ लिस अउ कहिथे- दाई मोर परान ल बचा ले, नइ बाचौं तइसे लागथे। 
अपन गोसइया शिव परसाद करा अलदहीन हा गांव मं जचकी कराथे तउन दाई केजिया बाई ल बलवाय बर संदेश भेजवाथे। ओहर आथे अउ ओ दे घंटा भर के भीतर सुंदर एक बेटा के जनम के होथे। 
केजिया परछी मं आके सबो झन ल बेटा अवतरे हे कहत बधाई देथे, सबो झन के चेहरा मारे खुशी के फूले नइ समाइस। शिव परसाद केजिया ला सौ रुपिया के नोट निछावर मं देथे। खोर मं एक ठन दनाका फटाका फूटिस तब जानगे, शिव  परसाद  इहां लइका अवतरे हे। 
समे गुजरत का लगथे, थोरको पता नइ चलय। एक दिन ये हांसत-खेलत परिवार ऊपर अइसे पहाड़ टूटगे के गांव के मालगुजार चालाकी करके ओकर जम्मो जायदाद ल तोर बाप हा मोर से करजा ले रिहिसे कइके छीन लिस। रोइस, गिड़गिड़ाइस फेर शिव परसाद के एक नइ सुनिस ओ गौंटिया हा। 
बेघरबार शिव परसाद उही दिन गांव छोड़े के परन कर लिस। शहर आके बनी-भूती करके अपन लोग-लइका के लालन-पालन  करे लगिस। शिव परसाद अउ अलदहीन अब बाजार मं सब्जी बेचे के धंधा करिस। 
बहू के जउन बेटा होय रिहिसे तेन मिस्त्री बनगे अउ घर-मकान बनावत-बनावत, सुंदर जमीन खरीद के खुद के अपन घर बना डरिस। धंधा चल परिस। अब मिस्त्री घला समे बीते के बाद अपन बेटा के बिहाव करथे। साल-दू-साल बाद ओकरो एक झन सपूत बेटा के जन्म होथे। दिन बहुरत समे नइ लागय कहिथे तइसने कस अलदहीन के भाग लहराय ले लग गे, फेर अपन ठेला पेलके बाजार जवई अउ साग-सब्जी बेचना आज ल नइ छोड़े हे। 
भगवान भरपूर भर देहे घर ला, डोकरा होगे हे शिव परसाद धकर-धकर करत हे फेर डोकरी ओला भसेड़त कइसनो करके बाजार ले जथे अउ ओला कहिथे- मरते दम तक हम धंधा ल नइ छोड़न। जेकर परसादे अतेक बढ़े हन, पनके हन, ओला तियागन नहीं, इही हमर मालिक हे, भगवान हे। 
देख तो देख अलदहीन अउ शिव परसाद के भाग ला, ओकर नाती गया परसाद बेंगलोर मेकेनिकल इंजीनियर बनगे हे। पच्चीस लाख के पैकेज हे ओ बाबू हा अपन दादी-दादा ल लाख मनाय के कोशिश करथे अउ कहिथे- अब तुमन ला ये धंधा करे के जरूरत नइहे। अतेक करेव। मैं ठाढ़ होगे हौं, कमाहौं, तुंहर घर ल भरिहौं, लबालब कर देहौं। 
नाती के बात ल सुनके अलदहीन अउ शिव परसाद के आंखी डहर ले आंसू झरे ले धर लेथे अउ ओकर सिर मं हाथ फेरत कहिथे- तोर मुंह मं दूध-भात बेटा। तोर बिहाव कर देथौं, सुंदर पुतरी कस बहू ला देथौं तहां ले ना छोड़ देबो ये धंधा ला। 
शिव परसाद गांव के मालगुजार के अतियाचार के सुरता करत ओकर धियान अपन जुन्ना घर-दुआर कोती चले जाथे। कइसे रेहेन, कइसे होगेन। बने दिन बहुरिस तेकर बर भगवान ल बधाई देवत कहिथे- जय होवय मालिक, जय होवय तोर। मोला जइसे दिन देखाय हस तइसे अउ कोनो ल झन देखावे।
 

 


सुनो भाई उधो,काला का कहिबे, कंउवा लेगे कान ल ...?

27-Jun-2024
परमानंद वर्मा बोरसी (बेमेतरा),  ( शोर संदेश )  बस्तर और बलौदाबाजार में दनादन बाजा बज रहा है। कहीं बारूद, कहीं बंदूक की गोलियां तो कहीं तोड़फोड़, उत्पात। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के सुशासन के स्वर लहरी छत्तीसगढ़ भर में गूंज रही है। छत्तीसगढ़ हम ही बनाए हैं तो हम ही इसे संवारेेगे भी। साय साहब सत्ता संभालते ही घट रही इन घटनाओं से 'सांय... सांय... कर रहे हैं तो वहीं जनता 'रांय... रांय... कर रही है। इसी संदर्भ में प्रस्तुत है यह छत्तीसगढ़ी आलेख...

मुसुआ ल देख के बिलई भागत हे, बिलई ल देखके कुकुर दुम हिलावत कोलकी कोती जाके जीव लुकावत हे, कुकुर ल देख के बेंदरा पेड़ मं जाके परान बचावत हे, मछरी ल देख के कोकड़ा दुबकत हे, मनखे ल देख के मगर तरिया भीतर पानी मं बूड़ जावत हे। अउ  चोर-डाकू ल देखके पुलिस डेर्रावत हे। याहा का उलटा नदिया-नरवा बोहाय ले धर ले हे। वइसन कस हाल जनता ल देखके सरकार घला डेर्राय कस होगे हे। 
समे अउ इतिहास अपन आप दुहराथे, कहिथे तउन सही बात हे का? कोनो-कोनो सियान, गुनी अउ पंडित-महराज मन अब अइसे केहे ले धर ले हे, बने खुलके तो नइ काहत हे फेर आधा डर-आधा बल करके ये काहत हे, कलजुग के मियाद खतम होगे हे या फेर ओकर चला-चली के बेरा हे तेकर सेती जाते जात अपन 'अटपट राजा चउपट नगरी, टका सेर भाजी टका सेर खाजा कस खेल देखावत हे। 
जइसन कभू नइ होय हे, कभू देखे-सुने ले नइ मिले हे तइसन-तइसन चरित्तर होय ले धर ले हे। सब नाक-कान कटा डरे हे। जुन्ना संस्कार, संस्कृति, रहन-सहन, बोली-बतरा, खान-पान, पहिनावा-ओढ़ावा सब धीरे-धीरे, एक-एक करके नंदावत जात हे। ये कलजुग जाती-बिराती हद करत हे। दाई, बहिनी, बेटी, बहू का करत भये... सुनबे देखबे ते बक्खाय असन लगथे। मुंह मं कपड़ा बोज के राह, आंखी ल मूंद के राह तभे कलियान हे, कुछु बोले, केहे तब खैर नइहे। 
होनी तो होके रहिथे, ओला कोनो रोक नइ सकय। कहिथे नहीं, कुछ करनी कुछ करम गति, कु्छ पुरबल के भाग, जाम्बुक तो अइसा कहे तैं का के हे रे काग? नदिया, नरवा,तरिया, ढोलगा, जंगल, पहाड़, रुख-राई, पशु-पक्षी सब रोवत हे। बड़ करलई के दिन आगे हे। दुख के पहाड़ सब के ऊपर खपलागे हे। सब भागे-भागे फिरत हे। कहां जाही, कोन बचाही, कोन हे मालिक?
लंका ल कोन जलइस बेंदरा। अशोक वाटिका ल कोन उजारिस बेंदरा? जउन जघा गलत काम होथे, तउन मन गलत करथे वइसन जघा ल जलाय अउ उझारे के काम बेंदरा मन करथे। बेंदरा मन कोन हे भगवान राम के गण होथे, सेना, सिपाही होथे। धरम के हियाव, रक्षा करना ओकर मन के धरम हे, काम हे, जइसे एक बेंदरा ला देख के लंका के राक्षस मन मैदान छोड़ के भाग गे, वइसने कस काम बलौदाबाजार मं होगे। जब-जब जउन मन धरम ल हानि, नुकसान पहुंचाथे, धरम देवता रूप धर के अपन गण ल उहां भेज देथे। भगवान केहे हे- 'धर्म संस्थापनार्धाय संभवामि युगे-युगे...। 
अब सब एती गुना-भाग करे मं लगे हे के ये कइसे होगे, कोन करिस, काबर करिस। अतेक दिन ले उहां खिचड़ी चुरत रिहिसे, तब सरकार, जनप्रतिनिधि अउ नौकरसाह का आंखी-कान मूंद के बइठे रिहिन हे? तरिया-कुआं, नदिया मं जइसे कोनो बूड़त रहिथे तब भगवान वइसन मनखे ल बचाय खातिर तीन बार मौका देथे। उझाल देथे ताकि कोनो देख सकय त बूड़त जीव के रक्षा कर दय। कोनो नइ देखिही तहां ले ओकर सीताराम हो जथे वइसने कस हाल बलौदाबाजार के होगे। 
सब जीव-जन्तु परेशान, हाथी, बेंदरा, सियार, शेर, भालू सब अब गांव-गांव भटके ले धर ले हें। जंगल साफ होगे हे, नदिया-नरवा, तरिया सब झुक्खा परगे हे, ए जानवर मन मनखे मन ल खाय बर दउड़ावत हे, पटकत हे, मारत हे। अब एती का होही, कइसे होही तेला भगवान जानय अउ सरकार।
 


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